साठ के बाद की ज़िंदगी – सम्मान से जीने का अधिकार
नमस्कार साथियों,
जय हिंद, जय भारत।
आज मैं एक ऐसे वर्ग की आवाज़ बनकर आपके सामने खड़ा हूँ, जिसने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। वो हैं — हमारे 60 वर्ष से ऊपर के नागरिक, जो आज भी समाज की नींव हैं, लेकिन बिना आय के, बेबस और उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं।
सोचिए, जिन्होंने अपनी जवानी, अपना खून-पसीना इस देश की प्रगति में लगाया, जो हर दिन टैक्स भरते रहे — खाने पर, पहनने पर, दवाओं पर, बिजली-पानी पर — वो आज जब बूढ़े हुए, तो क्या उन्हें सम्मान से जीने का हक नहीं?
हमारी माँग है:
सरकार हर 60 वर्ष से ऊपर के नागरिक को एक नियमित मासिक आय दे — जैसे मजदूर को सैलरी मिलती है, वैसे ही बुजुर्गों को भी एक “न्यूनतम पेंशन” मिले, ताकि वे अंतिम साँस तक आत्मसम्मान से जी सकें।
क्यों जरूरी है ये पेंशन?
- 60 के बाद कोई नौकरी नहीं देता, और खुद का काम शुरू करने की ताकत न शरीर में रहती है, न पैसे में।
- घर-परिवार भी हर किसी का साथ नहीं देता, और उस स्थिति में वे पूरी तरह से असहाय हो जाते हैं।
- बुजुर्गों की दवाएँ, देखभाल, रहने और खाने का खर्च हर महीने चलता है — लेकिन आय नहीं होती।
- ये वही लोग हैं जिन्होंने देश की नींव रखी है — उनके अनुभव, त्याग और मेहनत का सम्मान होना चाहिए।
हमारी स्पष्ट माँग:
हम सरकार से माँग करते हैं कि –
हर 60 साल से ऊपर के नागरिक को कम से कम मजदूर की एक महीने की न्यूनतम सैलरी जितनी पेंशन दी जाए।
चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, व्यापारी हो या घरेलू महिला।
ये कोई भीख नहीं — ये उनका अधिकार है, उनका हक़ है, जो उन्होंने अपने जीवन की मेहनत से अर्जित किया है।
निष्कर्ष:
साथियों,
हमारी पार्टी यह संकल्प लेती है कि हम बुजुर्गों की आवाज़ बनेंगे। हम यह मुद्दा संसद में उठाएँगे, विधानसभाओं में उठाएँगे, और जब तक हर बुजुर्ग को पेंशन नहीं मिलती — तब तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी।
साठ के बाद की जिंदगी भी उतनी ही कीमती है, जितनी जवानी की होती है।
सम्मान से जीना हर नागरिक का अधिकार है।
चलिए, एक ऐसे भारत की ओर बढ़ते हैं जहाँ बुजुर्गों को सहारा नहीं, अधिकार मिले।
धन्यवाद।
जय बुजुर्ग – जय भारत।